तिहाड़ जेल में रह रहे 57 वर्षीय नाईजीरियाई नागरिक गेब्रिएल ने कभी नहीं सोचा था कि जेल में होली के त्यौहार पर रंग बनाने का काम उसे अध्यात्म की ओर ले जाएगा और जीवन के 37 वर्षो तक आपराधिक गतिविधियों में लिप्त रहने के बाद उसकी अंतरआत्मा को शांति मिलेगी।
पश्चिमी दिल्ली स्थित दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी जेल तिहाड़ जेल में जाली पासपोर्ट रखने और नशीले पदार्थो का व्यापार करने के अपराध में गेब्रिएल पांच साल से बंद है।
गेब्रिएल ने आईएएनएस को बताया, "मैंने अपने जीवन के 37 साल छोटे-मोटे अपराधों में संलिप्त रहकर जाया किए। पिछले पांच साल से मैं अपनी गलतियों के लिए पछता रहा हूं। अब मैं पहले जैसा नहीं रहा, मैं बदल गया हूं।"
गेब्रिएल के जीवन में इतना बड़ा बदलाव आ चुका है कि वह अब जेल में कम उम्र के कैदियों को अपनी जीवन सुधारने की सलाह देता है।
तिहाड़ के प्रवक्ता सुनील गुप्ता ने आईएएनएस को बताया, "वह दूसरे कैदियों को गलत रास्ता छोड़ने और अच्छे कामों में ध्यान लगाने की सलाह देता है और उनकी मदद करता है। वह सबके लिए मददगार की तरह है।"
गेब्रिएल उन 88 कैदियों (38 महिलाएं एवं 50 पुरुष)में शामिल है, जिन्हें छोटे मोटे कार्यो के लिए प्रशिक्षण और ध्यान लगाने की कक्षाओं के माध्यम से खुद को सुधारने का मौका मिला है। सजा समाप्त होने के बाद उन्हें जेल में लिए गए प्रशिक्षण की मदद से रोजगार ढूंढने में सहायता मिलेगी।
होली के रंग बनाने के प्रशिक्षण के अतिरिक्त एक गैर सरकारी संस्था दिव्य ज्योति जागृति संस्थान (डीजेजेएस) की पहल और मदद से कैदियों को अगरबत्ती बनाने और हर्बल सौंदर्य प्रसाधन बनाने का भी प्रशिक्षण दिया जाता है।
डीजेजेएस के प्रवक्ता स्वामी विशालानंद ने आईएएनएस को बताया, "हम कैदियों को अध्यात्म सिखाने पर जोर देते हैं, हम उन्हें योग और ध्यान लगाना सिखाते हैं। इससे उन्हें जेल के बाहर की दुनिया में सामान्य जीवन जीने में मदद मिलेगी।"
तिहाड़ में योग और अध्यात्म जैसी गतिविधियों के अलावा कैदियों को बेकरी का काम, अगरबत्ती बनाना, रंग बनाना जैसे रचनात्मक कार्यो का प्रशिक्षण दिया जाता है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।